लॉकडाउन के दौरान पुस्तकों की व्यथा

लॉकडाउन के दौरान पुस्तकों की व्यथा

यहाँ हम आज लॉकडाउन के दौरान अलमारियों में बंद दो पुस्तकों के बीच के वार्तालाप को सकारात्मक दृष्टि से समझने की कोशिश करेंगे कि आखिर एक वर्ष से ऊपर के समय के होने पर ये दोनों पुस्तकें अपनी – अपनी व्यथा किस तरह से व्यक्त कर रही हैं – पुस्तक – एक ( कालिंदी ) पुस्तक – दो ( बाल कथाएं )

कालिंदी अलमारी में बंद अपनी ही साथी पुस्तक से कहती है – अभिवादन ! बाल कथाएं | बाल कथाएं – अभिवादन कालिंदी |

कालिंदी – कैसा महसूस कर रही हो तुम इन पुस्तकालय में बंद अलमारी में ? बाल कथाएं – घुटन सी महसूस हो रही है बाहर जाने की तीव्र इच्छा हो रही है | क्या तुम्हारी ऐसी तीव्र इच्छा नहीं हो रही !

कालिंदी – मैं अपने बारे में क्या कहूं | आज के पाठकों के पास लम्बी – लम्बी कहानियों ( उपन्यास ) के लिए समय ही कहाँ है | वैसे भी जब बच्चे और शिक्षक विद्यालय आते थे तब मेरी ओर किसी की नज़र ही नहीं पड़ती थी जो मैं तीव्र इच्छा व्यक्त करूं बाहर जाने की |

बाल कथाएं – मैं तुम्हारी व्यथा समझ सकती हूँ कालिंदी | आज के पाठकों के पास पुस्तकों के अलावा भी बहुत से अन्य डिजिटल स्रोत हैं | इसलिए हमारी ओर से उनका रुझान कम हो रहा है | पर एक बात कहूं , कितना भी डिजिटल विकास हो जाए किन्तु हम बाल कथाओं के प्रति बच्चों का आकर्षण कम नहीं हो सकता | मैं तो इंतज़ार कर रही हूँ कि स्कूल खुलें, पुस्तकालय खुलें और बच्चे हमें अपने कोमल हाथों में मुझे अपने साथ लेकर जाएँ , मुझे पढ़ें और मुझमे समाहित चित्रों को निहारें | काश ! ये दिन जल्दी आयें | पर मुझे कुछ बच्चों की एक बात बिलकुल अच्छी नहीं लगती वो ये कि वे मेरे बहुत से पन्नों पर फ़ोन नंबर , अपना नाम या फिर उलटे – सीधे चित्र बना देते हैं | इससे मेरी खूबसूरती पर भी असर पड़ता है | एक बात और कहूं किसी को बताना नहीं कि मेरी किताब में पेज 20 से 22 नहीं है | वो बच्चे पेज चुरा लेते हैं न कभी – कभी |

कालिंदी ( अपने मन को तसल्ली देते हुए ) – पर एक बात है बाल कथाएं | जब किसी पाठक का मन उपन्यास की ओर आकर्षित होने लगता है तो वे स्वयं को रोक नहीं पाते | डिजिटल पुस्तकों को पढ़ने में आँखों और मस्तिष्क पर जोर पड़ता है जबकि हमें लगातार पढ़ने पर भी पढ़ने की तीव्र लालसा बनी ही रहती है | हाँ , एक बात और उपन्यास पढ़ने वाले पाठकों की स्मरण शक्ति बहुत विकसित हो जाती है चूंकि उपन्यास पाठक को अगली होने वाली घटना के बारे में उत्सुक किये रहता है | छोटी कहानियां अक्सर बच्चे पढ़कर भूल जाते हैं किन्तु उपन्यास के चरित्र उन्हें हमेशा याद रहते हैं |

बाल कथाएं – समस्या तो यह है कि वर्तमान स्थिति हमारी दोनों की ही अति दयनीय है | हम चाहकर भी अपना उपयोग सिद्ध नहीं कर सकते | बच्चों के पैरों की थाप सुनते ही मेरा तो मन उछलने लगता है | मेरे बाजू वाली अलमारी में जो अंग्रेजी की कहानियों की प्यारी – प्यारी पुस्तकें हैं , इस ओर भी मैंने बच्चों को आकर्षित होते देखा है | इनमे भी नन्ही – नन्ही परियों की कहानियाँ हैं जो बच्चों को बहुत भाती हैं | ( कालिंदी का दिल बहलाने के लिए ) वैसे कालिंदी तुम तो अभी भी नई नवेली दुल्हन की तरह दिखती हो और मुझे देखो मेरी हालत तो बिलकुल खराब हो गयी है | मेरी जिल्दबंदी न हुयी तो जल्दी ही पुस्तकालय से बाहर रद्दी में बेच दी जाऊंगी | हमारी जिल्दबंदी होते रहने से पाठक हमें लम्बे समय तक पढ़ सकते हैं |

कालिंदी – बाल कथाएं, मैं तुम्हें नई नवेली दुल्हन की तरह इसलिए दिखाई देती हूँ चूंकि मेरा उपयोग बहुत कम होता है और कई बार तो पाठक अपना पुस्तकालय रिकॉर्ड मजबूत दिखाने के लिए मुझे अपने साथ ले जाते हैं और पंद्रह दिन बाद बिना पढ़े ही लौटा जाते हैं | अरे सुनो एक घटना सुनाती हूँ | एक बार इसी स्कूल के मिश्राजी मुझे अपने साथ ले गए और उनके पड़ोसी दुबे जी ने उनसे मुझे चार – पांच दिल के लिए मांग लिया | मिश्राजी ने मुझे उन्हें ख़ुशी – खुशी दे दिया | कुछ समय बाद मिश्राजी ने अपनी पुस्तक वापस मांगी तो दुबेजी ने यह कह दिया की मैंने आपको पुस्तक वापस कर दी है | काफी झगड़ा हुआ और बड़ी मुश्किल से दुबेजी ने पुस्तक लौटाई | यह सब सुन “ बाल कथाएं ” थोड़ा निराश हो जाती है और कहती है कि आज नहीं तो कल , तुम्हें भी उत्तम पाठक प्राप्त हो ही जायेंगे | आप हम दोनों मिलकर प्रभु से प्रार्थना करते हैं कि ये कोरोना काल समाप्त हो जाए | विद्यालयों में फिर से रौनक हो जाए | बच्चों की मीठी – मीठी मधुर आवाजों से ये विद्यालय रोशन हो जाए और हम फिर से बच्चों के साथ अठखेलियाँ कर सकें |

अनिल कुमार गुप्ता अंजुम मौलिक लेख सर्व अधिकार सुरक्षित

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8 Comments

Reyaan

11-Apr-2024 06:31 PM

Nice

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Shnaya

11-Apr-2024 05:16 PM

V nice

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आपका आभार जी

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Gunjan Kamal

11-Apr-2024 04:12 PM

शानदार प्रस्तुति

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शुक्रिया जी

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